कर्म
जब से मैंने आलस्य छोड़ दिया,
हर भय ने दामन छोड़ दिया।
'भाग्य भरोसे' बैठ के कुछ नहीं होने वाला,
इसीलिए मैंने साथी 'कर्म से नाता' जोड़ लिया।
हौंसलों का दामन थामा जब से,
सफर में साथी जीवन के,
हर बाधा मुझसे हार गई,
'ना उम्मीद' ने नाता तोड़ दिया।
तू नर है, क्यूँ घबराता है ?
हिम्मत कर, उठ, लड़ जीत मिलेगी,
है आत्म शक्ति जिस अंदर,
उसने हर बाधा का मुख मोड़ दिया।
कवि :
डॉ प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'
सहायक प्राध्यापक शिक्षाशास्त्र
आईएफटीएम विश्वविद्यालय मुरादाबाद
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