Thursday, April 20, 2017

काश ! कोई ऐसे समझाता


विद्यार्थियों के मन की व्यथा 


बालक से दुगुना बस्ता है, और मीलों का लम्बा रस्ता है, 
मात - पिता गुरु सुने न कोई, बालक मन ही मन कहता है, 
कक्षा में जो भी समझाते 
उसका एक मॉडल हमें दिखाते 
जो भी विज्ञान की बातें होतीं 
थोड़ा - थोड़ा करके सिखलाते 
मैथ में होतीं ढेरों पहेली 
सोच - समझ कर हम सुलझाते 
यदि मिलती शिक्षा ऐसे समझाकर 
हम भी पढ़ते खूब मन लगाकर 
इंग्लिश का इतना डर न देते 
हिंदी कविताओं से भर देते 
मोरल का सारा शिष्टाचार 
सबको नमस्ते सबको प्यार 
काश ! ये सपना न होता 
नीरस बुक पढ़ना न होता 
ले इतना वज़न चलना न होता 
काश ! इतना हमें रटना न होता 
यदि खेल खेल कर पढ़ना होता 
तो, सोचो फिर कितना अच्छा होता 
सीख भी लेते, पढ़ भी लेते हम 
काश ! कोई ऐसे समझाता !

                                                          - प्रदीप कुमार तिवारी "साथी"


Saturday, April 15, 2017

पगली

पगली 
सोच - सोच के पागल हो गया
उस पगली के बारे में 
मोह लिया जिसने दिल मेरा 
केवल एक इशारे मे
जब टकराई थी मुझसे वो 
बात है मई महीने की 
सीने में धक - धक की आहट 
माथे पे बूँद पसीने की 
नज़र नज़र से मिली नज़र मुझे 
आने लगी वो सारे में 
उलझी जुल्फें मासूम नज़र 
होठों का हिलना, पूंछो न 
गालों पे लट  बालों  की यूँ 
मस्ती में हंसना, पूंछो न 
सोच रहा हूँ किससे पूंछू
अब मैं उसके बारे में
सोच - सोच के पागल हो गया
उस पगली के बारे में 
मोह लिया जिसने दिल मेरा 
केवल एक इशारे मे-----


                                                   ----  प्रदीप कुमार तिवारी "साथी"





वन्दे मातरम वन्दे मातरम

oUns ekrje~

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iznhi dqekj frokjh ^^lkFkh**
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