Wednesday, September 7, 2016

दास्तान - ए - बाढ़

इस बाढ़ की बस यही है कहानी  

चेहरे पे उदासी है आँखों में पानी 
सहमा हुआ दिल न होठों पे वाणी 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

न सोचा था ऐसी भी इक रात होगी 
पल भर में दुनिया ये बर्बाद होगी 
जो बाहों में हम को समेटे हुए हैं 
होंगे न वो उनकी बस याद होगी 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

न रोटी न कपडा न है आशियाना 
न कोई खबर है कहाँ हमको जाना
लगी  भूख  रोटी को  रोते  हैं बच्चे 
तड़पते बिलखते है पल पल बिताना
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

धड़कनो  से  साँसे  जुदा  हो  गईं 
कितने बेघर हुए कितनी विधवा हुईं 
बच्चे  बूढ़े  जवानों  में  कितने मरे 
इसका  अभी  तक  पता  भी  नहीं 
इस  बाढ़  की  बस  यही  है  कहानी---

नज़र  ढूढती  हैं  उन्हें  दर -ब- दर 
आता  नज़र  है  बस  जल ही जल 
गम है इतना कि अपना गला गोंट लें 
गूंट गम के  पियें  कि  पी लें ज़हर
इस बाढ़ की बस यही है कहानी--- 

ज़ख़्म जो है मिला ये भरेगा नहीं 
ढलता आँसू कभी अब थमेगा नहीं 
मौत से बद्तर हो जाएगी जिंदगी 
वक्त काटे से भी अब कटेगा नहीं 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

आश अपनों की है प्यास पानी की है 
दोष किस्मत का है या जवानी की है 
हमसफ़र से सफर  में  जुदा  हो  गए 
ये खता  दोस्तों  बढ़तें  पानी  की  है 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

                                                    --- प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'



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