Thursday, September 22, 2016

शहीदों को श्रद्धांजलि

                                                            १९-९ -२० १६ 

जो सपूत शहीद हुए हैं ----

सिंह शहीद हुए हैं जो नाकाम न इनका शव जायेगा।
एक एक शव की खातिर मारा एक एक सौ जायेगा। 

फौजी शान वतन की है वर्दी पहचान वतन  की हैं। 
खून के बदले खून बहेगा सबको कसम वतन की है। 

जो कसम वतन से खाई है वो सारी कसम निभायेगे। 
उनका खून नसों में जम जायेगा इतना खून बहायेंगे। 

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अगर जवानों के बदले, 
                             कोई नेता मारा जाता।
तो हर मंत्री धरने पर होता,
                            और हर चैनल ये चिल्लाता। 
खामोश जो संसद है अब तक,
                            वो युद्ध का ऑर्डर ले आता।
 जो गूँज अभी है शहरों तक,
                           हर शोर वो बार्डर तक जाता।
बन्दूक से बातें होतीं ही न,
                           अब तक एटम बम फट जाता।
क्या है जबाब इस जुर्रत का,
                           दुनिया को पता ये चल जाता।
गर गोली मंत्री को छू जाती,
                          तो संसद में हंगामा मच जाता।
अब तक दिल्ली लाहौर में होती,
                         कोहराम विश्व में छा जाता।
कोई जाँच नहीं, कोई बात नहीं,
                         न समझौता कोई किया जाता।
नस्लें भी डरतीं पैदा होने से,
                        पाक का ये हाल किया जाता।
अगर कोई आतंकी आकर,
                       मंत्रियों पर यूँ तन जाता।
तो हिंदुस्तानी फ़ौज का उत्सव,
                      लाहौर में अब तक मन जाता।
कुर्सी की लालच छोड़ के मंत्री,
                     अगर देश का हिस्सा बन जाता।
तो पाक की फिर औकात ही क्या,
                      सारे विश्व का दुश्मन थर्राता।
मंत्री जो होता देश भक्त ,
                    हँसकर, बलि वतन पर चढ़ जाता। 
तो फिर अरबों से लड़ने की,
                 मुट्ठी भर पाक न कोशिश कर पाता।
हर जवान मरने से पहले,
                      सौ - सौ की लाश गिरा जाता।
सदियों तक पढ़ती  ये दुनिया,
                       ऐसा इतिहास बना जाता।
जो सपूत शहीद हुए है अभी,
                      गर उनको मौका मिल जाता।
तो मर्द कौन है पल भर में,
                      पता, नामर्द पाक को चल जाता।
अफ़सोस मुझे है मंत्री पर,
                       लड़ने से है क्यूँ घबराता।
यहाँ फ़ौज खड़ी है वीरों की,
                     एक बार  नहीं क्यूँ  लड़ जाता।
समझा समझा के हार गये,
                    अब लातों से इसको कूटा जाता।
पड़ती जब जूतों की मार,
                      तो ऊँट, पहाड़ के नीचे आ जाता।
रोज़ रोज़ चिल्लाने वाला,
                       तब पाक ये ठंडा पड़ जाता।


जय हिन्द।                               जय जवान।

                                                 ---- प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'


  




Wednesday, September 7, 2016

दास्तान - ए - बाढ़

इस बाढ़ की बस यही है कहानी  

चेहरे पे उदासी है आँखों में पानी 
सहमा हुआ दिल न होठों पे वाणी 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

न सोचा था ऐसी भी इक रात होगी 
पल भर में दुनिया ये बर्बाद होगी 
जो बाहों में हम को समेटे हुए हैं 
होंगे न वो उनकी बस याद होगी 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

न रोटी न कपडा न है आशियाना 
न कोई खबर है कहाँ हमको जाना
लगी  भूख  रोटी को  रोते  हैं बच्चे 
तड़पते बिलखते है पल पल बिताना
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

धड़कनो  से  साँसे  जुदा  हो  गईं 
कितने बेघर हुए कितनी विधवा हुईं 
बच्चे  बूढ़े  जवानों  में  कितने मरे 
इसका  अभी  तक  पता  भी  नहीं 
इस  बाढ़  की  बस  यही  है  कहानी---

नज़र  ढूढती  हैं  उन्हें  दर -ब- दर 
आता  नज़र  है  बस  जल ही जल 
गम है इतना कि अपना गला गोंट लें 
गूंट गम के  पियें  कि  पी लें ज़हर
इस बाढ़ की बस यही है कहानी--- 

ज़ख़्म जो है मिला ये भरेगा नहीं 
ढलता आँसू कभी अब थमेगा नहीं 
मौत से बद्तर हो जाएगी जिंदगी 
वक्त काटे से भी अब कटेगा नहीं 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

आश अपनों की है प्यास पानी की है 
दोष किस्मत का है या जवानी की है 
हमसफ़र से सफर  में  जुदा  हो  गए 
ये खता  दोस्तों  बढ़तें  पानी  की  है 
इस बाढ़ की बस यही है कहानी---

                                                    --- प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'